#The Kashmir files Read 5 horrifying stories of atrocities on Kashmiri Hindus according to books – जान बचाने के लिए चावल के बर्तन में छिपे बीके गंजू, पत्नी के सामने कर दिया था कत्ल; पढ़ें- कश्मीरी हिंदुओं पर जुल्म की 5 खौफ़नाक कहानी : Rashtra News
The Kashmir Files में जैसा दिखाया गया है क्या कश्मीरी पंडितों के साथ वैसा ही हुआ था? पढ़ें सीन दर सीन की कहानी..
अमित
कश्मीरी पंडितों पर ढाए गए जुल्म और उनके पलायन पर आधारित फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files) इन दिनों चर्चा में है। फिल्म को लेकर दो-फाड़ दिख रहा है। एक वर्ग इस फिल्म को कश्मीरी पंडितों का सच बता रहा है तो दूसरा प्रोपगेंडा। क्या फिल्म में जैसा दिखाया गया है कश्मीरी पंडितों के साथ वैसा ही हुआ था? चर्चित लेखक बशारत पीर से लेकर राहुल पंडिता तक ने कश्मीर पर आधारित अपनी किताब में उस वक्त की घटनाओं को कुछ यूं दर्ज किया है।
सीन एक- क्रिकेट खेल रहे कश्मीरी पंडित बच्चे को सचिन को सेलिब्रेट करने पर पीटा जाता है।
हकीकत: बशारत पीर अपनी किताब The Curfewed Night और राहुल पंडिता अपनी किताब Our Moon Has Blood Clouts में क्रिकेट को लेकर बिल्कुल ऐसे ही माहौल का जिक्र करते हैं, जहां भारतीय टीम या नायकों की जीत को बुरी निगाहों से देखा जाता था और पाकिस्तान या दुनिया की दूसरी टीमों की जीत पर जश्न मनाया जाता है।
सीन दो- पुष्कर नाथ पंडिता के बेटे को आतंकियों द्वारा खोजकर मारा जाना, जिसमें वो चावल से भरे बर्तन में छिपने की कोशिश करता है।
हकीकत; भारत संचार निगम लिमिटेड के युवा इंजीनियर बाल कृष्ण गंजू को 22 मार्च 1990 को ठीक इसी तरह मारा गया था। आतंकी जब वापस लौट रहे थे, तो पड़ोसियों ने आतंकियों को बताया था कि गंजू चावल भरे उस बर्तन में छिपे हैं। ठीक इसी तरह फिल्म में दिखाया गया है। इतना ही नहीं, बीके गंजू की पत्नी विजय गंजू ने जब उन्हें भी मार डालने के लिए कहा, तो आतंकियों ने जवाब दिया कि खून से सने इन चावलों को अपने बच्चों को खिलाना और उन्हें वो इसलिए नहीं मारेंगे क्योंकि लाश पर रोने वाला भी तो कोई होना चाहिए।
सीन तीन- एयर फोर्स के अधिकारियों को गोलियों से भून दिया गया।
हकीकत; जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे जगमोहन ने अपनी किताब My Frozen Turbulence in Kashmir में इस घटना का जिक्र किया है। भारतीय वायुसेना के स्वैड्रन लीडर रवि खन्ना सहित तीन अन्य साथियों को उस समय गोली मारी गई थी, जब वे अपने दफ्तर जाने के लिए रावलपुरा बस स्टॉप पर कार का इंतजार कर रहे थे। वायुसेना के अफसरों को मारने की ये घटनाएं बताती हैं कि स्थिति कितनी बिगड़ चुकी थी, आतंकियों के हौसले कितने बुलंद थे और राज्य से कहीं आगे जाकर ये सीधे भारत की सत्ता को चुनौती थी।
सीन चार- हत्या करके कश्मीरी पंडितों की लाशें पेड़ पर टांग दी गईं।
हकीकत; कश्मीर के अनंतनाग (अलगाववादी इसे इस्लामाबाद कहते हैं) में एक स्कूल हेडमास्टर और साहित्यकार सर्वानंद कौल प्रेमी और उनके छोटे बेटे वीरेंदर कौल को आतंकियों ने 1 जून 1990 को मार दिया था। मारने से पहले उन्हें टॉर्चर किया गया और उनकी लाशों को पेड़ से टांग दिया था। लाखों की संख्या में पंडितों के पलायन के बाद भी सर्वानंद कौल ने कश्मीर नहीं छोड़ा था, क्योंकि उन्हें लगता कि आतंकी उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाएंगे।
सीन पांच- शारदा पंडित को आंतकी और अलगाववादी फारुख अहमद डार द्वारा आरी से कटवाया जाना।
हकीकत; जून 1990 की घटना है। श्रीनगर में एक यूनिवर्सिटी में लाइब्रेरियन गिरिजा टिक्कू का परिवार घाटी से पलायन कर चुका था और जम्मू के शरणार्थी कैंप में रह रहा था। लेकिन गिरिजा टिक्कू की कुछ सैलरी बकाया था। अपने साथियों के कहने और पूरी तरह सुरक्षित महसूस करने के बाद वे कश्मीर गईं थीं, जहां आतंकियों ने उनके सहयोगियों के सामने अपरहण किया, गैंग रेप किया और फिर ठीक वैसे ही शरीर को आरा मशीन से दो हिस्सों में काटा गया था, जैसे फिल्म में दिखाया गाया है। जब गिरिजा को काटा गया, तब वे जिंदा थीं।
सीन छह (अंतिम)- 24 कश्मीरी पंडितों को एक लाइन में खड़ा करके मारा जाना। इस सीन के समांतर दो घटनाएं घटित हुई थीं। निर्माता-निर्देशक ने कौन सी घटना चुनी है, कहना मुश्किल है। लेकिन यहां दोनों घटनाओं का विवरण दिया जा रहा है।
हकीकत; (घटना एक) 25 जनवरी 1998 को गंदरबल के पास एक छोटे से गांव वंधामा में 23 कश्मीरी पंडितों का नरसंहार किया गया था। मरने वालों में महिला, पुरुष और बच्चे सभी शामिल थे। आतंकी सेना की वर्दी में थे और उनकी क्रूरता देखिए कि उन्होंने 3 साल के छोटे बच्चे को भी नहीं बख्शा था। घटना के दो दिन बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल, राज्य के राज्यपाल और मुख्यमत्री सहित यहां आए थे।
हकीकत; (घटना दो) ये घटना समय के साथ तालमेल नहीं रखती लेकिन ऐसा हुआ था। ये घटना मार्च 2003 की है, जिसे नादीमार्ग नरसंहार के नाम से जाना जाता है। इस घटना का जिक्र पत्रकार राहुल पंडिता और नीलेश मिसरा अपनी किताब The Absent State में किया है। इस दिन पूरे में भारत-ऑट्रेलिया के बीच क्रिकेट विश्वकप का फाइनल देखा जा रहा था, भारत की होती हार से लोग मायूस थे, टीवी सेट बंद हो चुके थे। नादीमार्ग में भी पंडितों के घर सन्नाटा पसरा था।
लेकिन तभी रात 10.30 बजे इस सन्नाटे को खत्म करते हुए आतंकियों ने गांव के ही एक निवासी मोहन भट्ट का दरवाजा खटखटाया। मोहन ने भांप लिया और पूरी कोशिश की कि दरवाजा न खुलने पाए। लेकिन वे असफल रहे। आतंकियों ने उस रात ऐसा तांडव मचाया कि गांव में रहने वाले 30 कश्मीरी पंडितों में से 24 मार दिए गए। मोहन भट्ट के परिवार के सभी सदस्यों को मार दिया गया, अकेले वे बच पाए थे क्योंकि वे घर और गांव से बाहर भागने में सफल हो गए थे।
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(News Source :Except add some keywords for the headline, this story has not been edited by Rashtra News staff and is published from a www.jansatta.com feed )
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