केजरीवाल सरकार के लिए इस साल दिल्ली के बजट को पूरा खर्च करना मुश्किल हो रहा है. सरकारी आंकड़ों को माने तो जनवरी के आखिर तक सरकार ने अलग-अलग प्रोजेक्ट के लिए तय किए गए बजट से आधा भी खर्च नहीं किया है. बड़ी बात यह है कि जिस शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर बजट में सबसे बड़े दावे किए गए थे, उनमें भी आधे से कम बजट खर्च किया गया है. खर्च करने के लिए सरकार के पास महज दो महीने का वक्त बचा ह
केंद्रीय मदद कम होने से नाराजगी
दिल्ली के लोगों के मन में यह सवाल उभर रहा है कि इस सरकार में काम हो भी रहा है या नहीं? केजरीवाल सरकार के पास वित्तीय साल खत्म होने के महज कुछ दिनों पहले तक लगभग आधा बजट पड़ा हुआ है. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और वित्त मंत्री मनीष सिसोदिया से इन सवालों के साथ ही अगले बजट को बनाने की कवायद शुरू हो गई है. केजरीवाल सरकार केंद्र पर बजट में दिल्ली को पैसा नहीं देने की वजह से नाराज है. सिसोदिया ने कहा है कि केंद्र के सौतेले व्यवहार से दिल्ली के विकास पर असर पड़ रहा है.
शिक्षा और स्वास्थ्य में वादे बड़े, काम कम
31 जनवरी तक के आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली सरकार अपने ही बजट का आधा हिस्सा ही खर्च कर पाई है. शिक्षा मद में 47 फीसदी खर्च हुआ है. चिकित्सा यानि मेडिकल पर तो हालत और बुरी है. वहां वित्तीय साल खत्म होने से दो महीने पहले तक लगभग 41 फीसदी बजट ही खर्च हो पाया है.
किसी विभाग में लक्ष्य पूरा नहीं
कई विभागों में तो खर्च का हिसाब किताब और भी ढीला है. ऊर्जा विभाग ने जनवरी तक अपने बजट का महज 0.18 फीसदी खर्च किया है. पर्यटन विभाग ने लगभग 6 फीसदी तो खाद्य आपूर्ति विभाग ने भी 6 फीसदी ही खर्च किया है. वहीं समाज कल्याण और पीडब्ल्यूडी विभाग ने पहले 10 महीने में 70 फीसदी से अधिक खर्च कर लिया है. अब सरकार बजट खर्च नहीं कर पाई है तो जाहिर है विरोधी दल तो निशाना साधेंगे ही. दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता ने इसकी शुरुआत कर दी है.
अगले बजट में दिल्ली सरकार का होगा इम्तिहान
दिल्ली सरकार की कमाई भी इस साल उसकी उम्मीद से कम रही है. इसके अलावा एमसीडी को फंड देना रहा हो या फिर बिजली और पानी पर सब्सिडी का खर्च, प्रोजेक्ट की बजाए रेवड़ियां बांटने पर बजट ज्यादा लगाया गया है. इसलिए आने वाले बजट में केजरीवाल सरकार के लिए चुनौती ये रहेगी कि प्रथमिकता विकास की योजनाएं हैं या फिर लोगों को सीधे फायदा पहुंचाना.