जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के अधीन स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर के सहयोग से आज नई दिल्ली में गंगा नदी बेसिन प्रबंधन और अध्ययन (सीजीआरवीएमएस) के लिए एक नये केंद्र का औपचारिक शुभारंभ किया। मंत्रालय ने आईआईटी कानपुर के साथ गंगा नदी बेसिन प्रबंधन योजना के गतिशील विकास और कार्यान्वयन में लगातार वैज्ञानिक सहायता के प्रावधान के लिए एक 10 वर्षीय अनुबंध ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
इस अवसर पर मुख्य भाषण देते हुए केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने विस्तार से इस बात का खुलासा किया कि मिशन के लिए गंगा नदी बेसिन प्रबंधन अध्ययन के केंद्र की किस लिए जरूरत है और यह सहयोग कितना महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि हम ऐसी रूप रेखा तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं जिसमें हमारी नदियों में दिलचस्पी रखने वाले पूरी दुनिया के लोगों के मतों को आमंत्रित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि हम प्रवाह उपचार संयंत्रों और सीवेज उपचार संयंत्रों की स्थापना करके गंगा नदी को साफ करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। इन मुद्दों को विश्व से प्रौद्योगिकी प्राप्त करके सुलझाया जा सकता है। लेकिन मुख्य मुद्दा यह है कि नदियों में कैसे लगातार प्रवाह को सुनिश्चित किया जा सके। इसके लिए सरकारी अधिकारियों, शिक्षाविदों, अनुसंधानकर्ताओं समेत सभी को प्रयास करने की जरूरत है।
जल संसाधन मंत्रालय में सचिव श्री शशि शेखर ने कहा कि सरकार ने हाईब्रीड वार्षिकी मॉडल नामक एक विशेष सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) ढांचे का उपयोग करके सीवेज उपचार संयंत्रों को लागू करने का निर्णय लिया है। आईआईटी के प्रोफेसर डॉ. विनोद तारे ने कहा कार्यक्रम को गांगा नदी बेसिन प्रबंधन अध्ययन केंद्र का नाम देना उचित है। यह केंद्र सरकार के लिए एक थिंकटैंक के रूप में कार्य करने के अलावा गंगा नदी बेसिन के तहत सभी गतिविधियों में समन्वय के लिए एक ज्ञान केंद्र के रूप में कार्य करेगा और इसकी गतिविधियों में विज्ञान, प्रौद्योगिकी अनुसंधान, नवाचार, सामाजिक, अर्थिक, वित्तीय और निवेश से संबंधित पहलू शामिल होंगे। यह केंद्र अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ सहयोग करेगा।